गृह प्रतिबंधित – एक लघु कथा
घर मे बैठ कर बड़े आराम से मैं पसंदीदा धारावाहिक का आनंद ले रहा था की तभी अचानक से एक आवाज सुनाई देती हैं ।
मैंने ध्यान से सुना तो ये आवाज घर के बाहर से आ रही थी ।
शायद कोई दरवाजे पर खड़ा मुझे आवाज दे रहा था ।
मैं बहुत बेमन से रिमोट को साइड में रखकर दरवाजा की ओर बढ़ चला ।
दरवाजा खटखटाने के उसके प्रयासों से लग रहा था जैसे उसे मेरे घर मे किसी तरह घुस आने की बड़ी व्याकुलता हो ।
दरवाजे खोलकर जैसे ही मैंने सामने देखा तो दंग सा रह गया – मेरे ठीक सामने खड़ी थी ” दफ्तर की चिंताएं ” वही जिसे रोज घर पहुचते ही मैं घर के बाहर छोड़ आता हूँ ।
खैर, मैंने दरवाजे को मुस्कुराते हुए बंद करके, लौटकर फिर से अपने धारावाहिक देखने मे व्यस्त हो गया ।
– Deepak Thakur
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