गृह प्रतिबंधित – एक लघु कथा

गृह प्रतिबंधित - एक लघु कथा

गृह प्रतिबंधित – एक लघु कथा घर मे बैठ कर बड़े आराम से मैं पसंदीदा धारावाहिक का आनंद ले रहा था की तभी अचानक से एक आवाज सुनाई देती हैं । मैंने ध्यान से सुना तो ये आवाज घर के बाहर से आ रही थी । शायद कोई दरवाजे पर खड़ा मुझे आवाज दे रहा … Read more

तब तक तुम्हारा वही , इंतज़ार करूँगा मैं

सोच के सागर में, गोते लगा रहा हूँ फिलहाल लौट आने में शायद, देरी हो सकती है मुझे अगर जो तुम मिलना चाहो, निजी बेचैनियों में तो आ जाना … इसी सोच के सागर में तब तक तुम्हारा वही , इंतज़ार करूँगा मैं ।

बातें जब करना मुझसे तुम

बातें जब करना मुझसे तुम परखना मत मुझे … तुम बातें जब करना मुझसे …तुम सिर्फ समझना मुझे … तुम सुनना, मेरे अतीत के हर किस्से को जिंगदी के सारे अच्छे बुरे हिस्से को लेकिन सिर्फ सुनना और सुनना कोई मतलब मत निकालना मेरे किस्सों का …. तुम

टूटे हुए लोग बार बार टूटेगे क्या भला

इस बात पर क्या अफ़सोस करना भला, जो तुम न बन सकी… हमसफ़र मेरी मुझे पता है मेरे इस ज़िन्दगी की हक़ीक़त इस जन्म में तो हमें मोहब्बत मिलने से रहा जो ताक लगाए बैठे है मेरे बिखर जाने की, टूटे हुए लोग बार बार टूटेगे क्या भला …

जब कभी भी मैं रूठ जाऊ तुमसे

जब कभी भी मैं रूठ जाऊ तुमसे और तुम कोशिश जो करो, मुझे मनाने की तो तुम करीब आकर बैठ जाना मेरे  और गुनगुना देना मेरा पसंदीदा गाना और मैं सारे शिकवे, सारे गिले भुलाकर भर लूंगा तुम्हें अपनी बाहों में