हाँ , ये सही है कि …
उसे अपने ज़िन्दगी से मैंने हमेशा के लिए तभी निकाल दिया था,
जब वो मेरे अलावा भी किसी और के होने में प्रयासरत थी ।
खैर, अब तो ये आलम है और ज़िन्दगी उस मुकाम पर आ खड़ी है कि
उसके बिना भी अब मैं रहने लगा हूँ, या यूं कहू की रहने का आदी हो चुका हूँ ।
खुश हूँ मैं , फिर से अपने दुनिया में ।
अपने हर एक सपने को जी रहा हूँ और बाकी को पूरा करने में लगा रहता हूँ ।
लेकिन, आज भी मैं उसका नम्बर अपने मोबाइल से नही हटा पाया और दिल के किसी एक मासूम कोने से उसके लिए दुआ ही निकलती है ।
पता नही, ये कौन सा एहसास है जो मुझमें अब भी बचा हुआ है ।
ये एहसास अपरिभाषित ही है शायद
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वो बेवफा है तो क्या, मत कहो बुरा उसको
कि जो हुआ सो हुआ, खुश रखे खुदा उसको
नजर ना आए तो उसकी तलाश में रहना
कहीं मिले तो पलट कर ना देखना उसको
– नसीर तुराबी